रामायण सात कांडो में विभक्त है , जैसे सुंदर कांड, बाल कांड, अयोध्या कांड, लंका कांड आदि।इन सभी कांडो में भगवन श्री राम के जन्म से लेकर वनवास तक की कहानिया निहित है और अधिकतर इन सब कांडो की कहानिया सब जानते है। लेकिन बहुत से लोग लवकुश कांड (luv kush kand) के बारे में ज्यादा नही जानते है।
हमारे विचारों की अभिव्यक्ति आपको लवकुश कांड की मुल तह तक पहुँचाने का प्रयास है। हम सभी जानते हैं कि रामायण के सात कांड है। पहले तुलसीदास जी ने रामायण के छ: भागों में रचना की थी। उसमें उत्तर कांड नहीं होता था। फिर कालांतर में कुछ वुद्धिमान विद्वानों ने राम और सीता जी के बारे में आधा सच झूठ लिख कर एक नये कांड की रचना की। जिसे उत्तर कांड नाम दिया गया।उस समय इस कांड पर भगवत प्रेमी महर्षियों ने घोर विरोध दिखाया था।
भुतकाल से ही साहित्यकार कवियों ने अनर्गल मिर्च मसाला मिला कर रामजी के चरित्र को धूमिल करने का प्रयास किया।राम जी को नारी प्रताड़ना का अधिकारी बना दिया। इसी उत्तर कांड की शुद्धिकरण के लिए बाबा तुलसी दास जी ने लवकुश कांड की रचना की। और इसे लवकुश कांड नाम दिया गया और रामायण का विस्तार किया।
लव कुश कांड भी हमारे लिए जानना आवश्यक है।इस पोस्ट में हम जानेगे की कैसे माता सीता ने लव कुश को जन्म दिया कैसे उनका पालन पोषण किया। कैसे उनको शिक्षित किया। लव और कुश की जीवनी कैसी थी यह सब लव कुश कांड में जानने को मिलेगा और क्यों माता सीता वाल्मीकि जी के आश्रम में गई और वहां रही और कैसे लव और कुश का जन्म हुआ ?
माता सीता क्यों वाल्मीकि आश्रम में जाकर रही ?
माता सीता वनवास से लौटने के बाद अयोध्या में ही रहती थी।वहाँ राजा राम चंद्र का राज तिलक हुआ। उसके पश्चात माता सीता अपने परिवार जन के साथ खुशी-ख़ुशी अपना जीवन व्यतीत कर रही थी और कुछ ही समय में उन्हें खुश खबरी भी मिल गई की वह माता बनने वाली है।उनके बच्चो को आशीर्वाद देने कई साधुओ का आगमन हुआ।जिन्होंने माता सीता को उनके बच्चो के उज्वल भविष्य के लिए आशीर्वाद दिया।
साथ ही भगवान राम को यह भी बताया की एक अच्छा राजा वही होता है जो प्रजा का सुख दुःख को स्वयं जाकर देखे।उस समय तो अगर एक स्त्री एक दिन भी पति से या घर से दूर रहे तो उसे पति के घर रहने की अनुमति नहीं मिलती थी और अगर अनुमति मिले तो पहले उन्हें अग्नि परीक्षा देनी पड़ती थी। ऐसा ही माता सीता के साथ हुआ।
प्रभु श्री राम तो प्रजा का सुख दुःख देखने गए थे।पर वह जाकर पता चला की सब लोग माता सीता का ही उदहारण दे रहे है।वहीं से माता सीता ने अयोध्या छोड़ने का संकल्प लिया और प्रभु श्री राम को छोड़ कर वाल्मीकि जी के आश्रम में आकर रहने लगी।
क्या राम जी ने माता सीता का परित्याग किया था?
राम जी के राज अभिषेक के बाद माता सीता जी के प्रति प्रजाजनों में अनर्गल विचार धारा का प्रसार होने से राम जी चिंतीत रहने लगे| माता सीता जी ने गुप्तचरों के माध्यम से राम जी की चिंता का कारण जान लिया| तत्पश्चात् सीता जी ने अपने पूर्वजों को साक्षी मानकर राम जी का परित्याग किया| लेकिन यह झुठी मान्यता है कि राम जी ने कलंक मिटाने के लिए माता सीता जी का परित्याग किया|
लवकुश का जन्म कैसे हुआ
माता सीता जी वनवास के समय वाल्मीकि आश्रम में रह कर एक तपस्वी की तरह जीवन यापन करने लगी। उन्हें सभी वनदेवी कहकर बुलाते थे। सीता जी वनगमन के पहले ही गर्भवती थी। वाल्मीकि आश्रम में माता सीता जी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम लव रखा गया।
एक दिन सीता जी नदी स्नान करने के लिए जा रही थी माता ने देखा वाल्मीकि जी अपने कार्य करने में व्यस्त थे। सीता जी ने विचार किया लव गुरु जी को अपने कार्य करने में बाधक बनेगा इसलिए लव को सीता जी अपने साथ ही ले गयी।
ईधर कुछ देर बाद वाल्मीकि जी का ध्यान लव की तरफ गया। जब लव को पालने में नहीं पाया तब बहुत चिंतीत हुऐ। मैं सीता को क्या जबाब दुंगा। वाल्मीकि जी ने अपनी योग साधना से एक कुश (घांस का तिनका) लेकर जल से अभिमंत्रित कर लव बना दिया।
जब सीता जी बापस लौटी उनके साथ लव को देख कर वाल्मीकि अचंभित हो गये। सीता जी वाल्मीकि जी के साथ एक और लव को देख बहुत प्रशन्न हुयी। वाल्मीकि जी ने कुश से उत्पन्न बालक का नाम कुश रखा। इस प्रकार लवकुश का जन्म हुआ।
इसके बाद माता सीता ने लव और कुश का बहुत ही अच्छे तरीके से ध्यान रखा और पालन पोषण किया।उन्हें तट पर स्नान करने ले जाती। उनके लिए अपने हाथो से खिलोने बनती। जब वे सोते तो उन्हें लोरी गा कर सुनाती। जैसे ही वह थोड़े बड़े हुए उनके लिए धनुष बाण तैयार कर के दिए। लव और कुश के जीवन में सिर्फ सीता माता की ही भूमिका रही। इस बीच न तो सीता के लिए अयोध्या से कोई समाचार आये न माता सीता ने कभी वहा के बारे में पूछा।
वाल्मीकि जी ने लवकुश को आध्यात्मिक शिक्षा व युद्ध कौशल में पारंगत किया।राम जी ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। लवकुश ने यज्ञ का घोड़ा पकड़ लिया। इसके पश्चात राम जी की सेना और लवकुश के बीच युद्ध हुआ।राम जी की सेना पराजित हो गई। अंत में राम जी का परिचय वाल्मीकि जी ने लवकुश को कराया।इन सारी घटनाओं के बाद भी राम जी ने माता सीता को सत्यता को प्रमाणित करने के लिए कहा। माता सीता जी ने अपनी माँ धरती का आह्वान किया और इस संसार से बिदा लेकर अपने दिव्य लोक को प्रस्थान किया।
श्री राम की जल समाधि का रहस्य
कथा अनुसार सभी देवता जानते थे कि भगवान राम जो विष्णु अवतार है तथा लक्ष्मण शेषनाग का अवतार है अपनी इच्छा से भगवान स्वयं अपने शरीर का त्याग नहीं करेंगे। ऐसे में यमराज ने एक युक्ति लगायी। एक दिन यमराज भेष बदलकर राम जी के पास गए और राम जी से एकांत में कुछ जरूरी बात करने प्रस्ताव रखा।
भगवान राम यमराज को लेकर अपने कक्ष में गये। यमराज ने राम जी से एक शर्त रखी कहा मैं चाहता हूँ कि जब तक हमारी वार्तालाप हो इस कक्ष में कोई प्रवेश न करे और न ही हमारी बातचीत सुने। अगर कोई भी बीच में आ जाता है तो आप उसे मृत्युदंड देंगे। लक्ष्मण बाहर पहरा दे रहे थे उसी समय दुर्वाशा जी पधारे और तुरंत राम जी से मिलने का आग्रह किया। राम आज्ञा से लक्ष्मण ने दुर्वाशा जी को रोक दिया। दुर्वाशा जी ने कहा मैं अभी राम से मिलना चाहता हूं अन्यथा पूरी अयोध्या को नष्ट कर दूंगा।
लक्ष्मण जी ने सोचा मेरे प्राणो से ज्यादा महत्व अयोध्या का है और कक्ष में चले गए। आज्ञा अनुसार लक्ष्मण जी का रामजी ने त्याग कर दिया। लक्ष्मण जी जल समाधिस्थ होकर अपने लोक को चले गये। इसके बाद रामजी भी सरयू में समाधिस्थ हो गये। इस तरह सभी देव रुपी महाविभुतियां अपने अपने लोक को चली जाती है। यह सब कुछ भगवान ने राम राज्य और मर्यादा की स्थापना के लिए किया और भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये।
राम बड़ा या नाम
हमारी विचार धारा सोचने पर मजबूर करती है कि राम बड़े हैं या उनका नाम।मेरी अनुभूति के अनुसार राम से बड़ा उनका नाम होता है। नाम से भी बड़ी राम नाम की महिमा होती है। क्योंकि महिमा अपरंपार अनंत होती है। इसका पार नहीं पाया जा सकता है।
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