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(Sundarkand) सुन्दरकांड क्या है और इसे कैसे पढ़ना चाहिए ?

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(Sundarkand )सुन्दर कांड वाल्मीकि जी द्वारा रचित एक धार्मिक ग्रन्थ का हिस्सा है। जो संस्कृत भाषा में वर्णित किया गया है। तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में राम चरित्र मानस की रचना की है। वैसे रामायण कयी भाषाओं में लिखी गयी है।

राधे श्याम रामायण का भी रामलीला मंचन में अधिक तह प्रयोग किया जाता है। इन सभी रामायण में सात कांड है। लवकुश कांड की रचना अलग से की गयी है। सभी में सुन्दर कांड उपस्थित हैं।

Sundarkand के नाम की धारणा

सुन्दर कांड Sundarkand को रामायण का हृदय कहा जाता है। इसमें हनुमान जी द्वारा किये गए कार्यो का वर्णन किया गया है। इस कांड की कयी चौपाईयाँ भक्ति भाव से प्रेरित होकर हमारी मार्गदर्शक हैं। लंका में सुन्दर वन में अशोक वाटिका थी। जहाँ रावन ने मां सीता जी को रखा था। यह भी सुन्दर कांड के नामकरण की एक धारणा है।

इस कांड की सभी घटनाएं मार्मिक ज्ञान वर्धक हृदय परिवर्तन करने वाली है। यह रामायण का संतुलन मध्य भाग है। संपुर्ण रामायण में राम जी की महिमा और उनके पुरुषार्थ को दर्शाया गया है। लेकिन सुन्दर कांड में राम भक्त हनुमान जी की विजय गाथा का वर्णन किया गया है।

सुन्दर कांड का पाठ सभी मनोअभिलाषाओ को पूरा करने वाला माना गया है। किसी भी प्रकार की परेशानी संकट में यह संकटमोचन पाठ संकटों से निवृत्ति प्रदान करता है। संकट शीघ्र ही टल जातें हैं।

सुंदरकांड Sundarkand के विशेष दोहे और चौपाईयाँ

सुन्दर कांड Sundarkand साठ दोहे है, सभी दोहों का भाव हृदय को छूकर हमें कर्तव्य परायण बनने की प्रेरणा देता है, सुन्दर कांड की सभी चौपाईयाँ ज्ञान वर्धक और भक्ति रस से भरी हुई है, हम सभी की मार्गदर्शक हैं।

यहाँ हम कुछ दोहे व चौपाईयाँ ले रहे हैं, जिससे हमें जीवंत प्रेरणा अनुभव हो। जिसने स्वच्छ तन निर्मल मन और स्वच्छ धन से सुन्दर कांड का पाठ किया या करेगा वह अवश्य ही आठों आयामों के स्वामी हनुमान जी की कृपा का पात्र बनता है।

।।दोहा।।

तात स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरिअ तुला एक अंग। तूल न ताहि सकल मिलि, जो सुख लव सत्संग।

इसका भावार्थ है, स्वर्ग और मोक्ष के सभी सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाय तो वे सब मिलकर भी दूसरे पलड़े में रखे एक पल के सत्संग की बराबरी नहीं कर सकते हैं।

।।चौपाई।।

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा, हृदय राखि कोसलपुर राजा। गरल सुधा रिपु करहिं मिताई, गोपद सिंधु अनल सितलाई।

इसका भावार्थ है, हम प्रभु श्री राम जी का नाम लेकर उनकी छबि हृदय में धारण करके अपने समस्त संसारिक कार्यों का प्रारंभ करें। श्रीराम की कृपा और हनुमान जी का आशीर्वाद से विष भी अमृत बन जाता है। शत्रु भी मित्रता को प्राप्त होतेहैं।भव सागर गाय के खुर के समान प्रतीत होता है। अग्नि भी शीतलता प्रदान करने वाली हमारे अनुकूल हो जाती है।

।।दोहा।।

मोहमूल बहु सूल प्रद,त्यागहु तम अभिमान. भजहु राम रघुनायक, कृपा सिंधु भगवान.

इसका भावार्थ है, मोह जिसका मूल है, ऐसे अज्ञानजनित बहुत पीड़ा देने वाले तमरुप अभिमान का त्याग कर श्रीराम जी रघुकुल के स्वामी, कृपा के सागर की सरनागति को प्राप्त करे।

।।दोहा।।

सचिव बैद गुरु तीनि जो, प्रिय बोलहिं भय आस. राज धर्म तन तीनि कर, होइ बेगिहीं नास.

इसका भावार्थ है मंत्री, वैध, व गुरु अगर ये तीनो अप्रसन्नता के कारण या भय के कारण या लालच व लोभ के कारण, या किसी प्रकार के लाभ के लिए, प्रिय बोलते है और सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं हित की बात नहीं करते हैं। चापलूसी करना जिनका धर्म होता है। ऐसे मंत्री राज्य का नाश कर देते हैं। बैद या चिकित्सक शरीर का नाश करते हैं।और ऐसे गुरु जी धर्म का नाश कर उसे पतन की ओर ले जाते हैं। ऐसे महापुरुषों से सावधान रहने की शिक्षा हमें सुन्दर कांड में बाबा तुलसीदास जी के द्वारा हमें प्राप्त होती है।

रामायण ज्ञान विज्ञान का अथाह सागर है. इसकी चौपाईयाँ व दोहे का भाव हमें सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा देता है. पुरुष से पुरुषोत्तम बनने का मार्ग प्रशस्त करता है.

सुन्दरकांड का पाठ(Sundarkand Path) कैसे करें?

साधारणतः हम सभी किसी ब्राह्मण पंडित जी को बुलाकर हनुमान जी व राम दरबार व सभी देवताओं का आह्वान कर उनका बिधान के अनुसार सोलह प्रकार ( सोडषोपचार) से पूजन करते हैं। हनुमान जी को प्रसाद स्वरुप गुड़ चना कदलीफल याने केले का भोग अतिप्रिय है।

इसके पश्चात गुरु ग्रंथ के स्वरुप सुन्दर कांड की किताब व रामायण जी का पूजन करते हैं। तत्पश्चात सभी भक्ति भाव के साथ रामायण जी की चौपाईयाँ संगीत के साथ गाकर हनुमान जी की व राम जी की महिमा का गुणगान करते हैं। भजन कीर्तन के साथ सुन्दर कांड का पाठ सभी का मन मोहित कर देता है।

पाठ समापन के बाद रामायण जी की एवं हनुमान जी की भक्ति भाव से आरती कर प्रसाद वितरण किया जाता है। कथा विसर्जन होत है, बिदा होई हनुमान, जो जन जहाँ से आये हो तंह तंह करो प्रयान।इस प्रकार कथा का विसर्जन कर पंडित जी एवं संगीत कलाकार व भजन कीर्तन गायकों का दक्षिणा से सम्मान कर समापन करते हैं।

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दैनिक सुन्दरकांड पाठ कैसे करें? (How to do Sundarkand Path?)

यह मानव शरीर परमात्मा की अद्भुत संरचना है। भक्ति मार्ग का अनुसरण करने वाले सभी मर्मज्ञ ज्ञानी महापुरुषों ने हमें यही बताया है कि घीं दूध के भीतर से ही निकलता है, बस हमें मंथन कर माखन को तपाने की जरूरत है।

अन्तर के पट खोल देख लो ईश्वर पास मिलेगा।बस उसे सच्चे मन से पुकारने की जरूरत है। मानव शरीर संरचना में रीढ़ की हड्डी के समकक्ष सात केन्द्र होतेहैं। इसे प्राणमय शरीर कहते हैं।

हमारे स्थुल शरीर में सात ग्रंथियाँ होती है। जैसे कार्डिनल ग्रंथि उसके उपर किडनी उसके उपर पन्क्रियाज उसके उपर थाइमस उसके उपर थाइरॉइड उसके उपर पिट्यूटरी उसके उपर पिनीयल ग्रंथि होती है। इनका हमारे सात केन्द्र या चक्रों का अटूट संबंध स्थापित है। आठवां केन्द्र की अनुभूति समाधि स्थिति में ही होती है।

पाठ का शाब्दिक अर्थ आठ आयामों को ध्यान में रखते हुए पढ़ना।यम नियम आसन प्राणायाम, प्रत्याहार, धारना, ध्यान, और समाधि। इसे अष्टांग योग कहते हैं।साधारण तह यहाँ यम नियम, शुद्धिकरण, आसन पवित्रता, स्थिरता, प्राणायाम, सांसों का लयबद्ध होना, प्रत्याहार, प्रभु कृपा को ग्रहण करना, धारना, ईश्वरीय सत्ता से हम पर कृपा बरस रही है, अनुभव करना, ध्यान, हमारी एकाग्रता को संबोधित करता है।

पाठ करने की तीन स्थितियां होती है।प्रथम हनुमान जी की प्रतिमा या मूर्ति के सामने दीपक जला कर, आसन पर पवित्र होकर, पवित्र भाव से बैठ जाय। फिर सुन्दर कांड का पाठ पढ़े। दुसरी हनुमान जी की प्रतिमा स्वरूप को अन्तर हृदय पटल पर धारन कर एकाग्रचित्त होकर पाठ पढ़े। तीसरी स्थिती में हमें सुन्दर कांड कण्ठस्थ होना चाहिए। एकाग्रचित्त होकर प्रथम केन्द्र नाभि के निचे मुलाधार पर ज्योति स्वरूप का ध्यान करते हुए दस दोहे पढ़े।

इसके बाद स्वाधिष्ठान केन्द्र थोड़ा उपर दस दोहे पढ़े। इसके बाद नाभि मणिपुर केन्द्र इसके बाद हृदय अनाहत केन्द्र इसके बाद कंठ विशुद्ध केन्द्र, और भृकुटि के बीच आज्ञा चक्र पर ज्योति स्वरूप का ध्यान करते हुए दस दोहे पढ़े। यहाँ हमारे पूरे साठ दोहे पुर्ण हो जाते हैं।

इसके बाद सहस्त्रार चक्र शिखर पर जिसे ब्रह्मरन्ध्र भी कहते हैं। हनुमान जी का ध्यान करते हुए, ऊँ हं हनुमते नमः, मंत्र की एक माला जाप करना चाहिए। मेरी अनुभूति भावना के आधार पर यह पाठ करने की सरल व उत्तम बिधि है। जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मुरत देखी तिन तैसी।

Sundarkand की पुजन सामग्री

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