वेद व्यास जी द्वारा लिखे 18 ग्रंथो में विष्णु पुराण एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में भगवन विष्णु के अवतारों का एवं उनके चरित्र का वर्णन किया गया है। इस पुराण के रचिता वेद व्यास जी के पिता पराशर जी है क्योकि उन्हें आशीर्वाद प्राप्त हुआ था,की वे विष्णुपुराण के रचिता होंगे।विष्णु पुराण में वर्णन आता है की पराशर जी के पिता जी को राक्षसों ने मर दिया था। तो पराशर जी बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने एक यज्ञ का आरंभ किया जिसकी शक्ति इतनी प्रबल थी की सारे राक्षस एक एक कर उस यज्ञ में अपने आप गिर कर स्वाहा होने लगे। इसके बाद राक्षसों के पिता पुलस्त्य ऋषि और ऋषि पराशर के पितामह वशिष्ट जी ने महर्षि पराशर को समझाया, और उनसे वह यज्ञ बंद करवाया।इस बात से प्रसन्न होकर पुलस्त्य ऋषि ने पराशर जी को विष्णु पुराण रचियता होने का आशीर्वाद प्रदान किया।
विष्णु पुराण की उत्पत्ति
ऋषि पराशर जी से वेद व्यास जी ने प्राथना कर कहा। कृपा कर मुझे बताये की विष्णु पुराण की उत्पत्ति कैसे हुई। वेद व्यास जी के प्रश्न करने पर पराशर जी ने उन्हें विष्णु पुराण का पूरा वर्णन सुनाया की कि ये आकाश, समुद्र, पर्वत, पृथ्वी, सूर्य या देवता आदि सब कैसे उत्पन्न हुए? और फिर वेद व्यास जी ने विष्णु पुराण की उत्पत्ति की। लेकिन ऐसा कहा जाता है की पराशर जी ने सुनी सुनाई बाते लोकवेद के आधार पर विष्णु पुराण की रचना की है। क्योकि हकिगत में यह ज्ञान पूर्ण परमात्मा ने प्रथम सतयुग में स्वयं प्रकट होकर श्री ब्रह्मा जी को दिया था। श्री ब्रह्मा जी ने कुछ ज्ञान तथा कुछ स्वनिर्मित काल्पनिक ज्ञान अपने वंशजों को बताया।
विष्णु पुराण कथा
अठारह पुराणों में विष्णु पुराण हम सभी को सनातन धर्म की संरचना का ज्ञान कराता है। यह पुराण भक्ति भाव से परिपूर्ण है। यह श्री पाराशर ॠषि द्वारा कही गयी है। इसके केंद्र बिंदु भगवान विष्णु जी है। जो सृष्टि के पालनहार है। इसमें देवताओं की उत्पत्ति, मन्वन्तर, कल्प विभाग, संपूर्ण धर्म देवर्षि तथा राज ॠषियों के चरित्र पर विशेष व्याख्यान है। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु जी की प्रधानता के कारण इसका नाम विष्णु पुराण रखा गया है। इसके लेखक वेदव्यास जी है।
हम विष्णु पुराण कथा के महत्व को जानने का प्रयास करतें हैं। हरि अनंत हरि कथा अनंता, हरि के नाम से भी बड़कर हरि की महिमा है। कोई कितना भी प्रयास कर ले विष्णु जी की महिमा का पुरी तरहसे से गुनगान नहीं किया जा सकता है। विष्णु पुराण कथा का आयोजन सात दिन के लिए होता है। इसके पीछे कुछ आत्मिक ज्ञान है। धार्मिक मान्यता के आधार पर सात लोको का पुराणों में वर्णन किया गया है।
मृत्यु लोक, वरुण लोक, अग्नि लोक वायु लोक आकाश लोक तप लोक, और सत्य लोक, इन्हें भु भुव: स्व: मह: जन: तप: और सत्यम लोक से भी जानते हैं। यह हमारी मानव देह का नर्वस सिस्टम भी है। प्राणमय शरीर में जिसे हम मुलाधार, स्वाधिष्ठान मणिपुर अनाहत विशुद्ध आज्ञा और सहस्त्रार या ब्रह्मरंध्र चक्र से जानते हैं। ये सभी अध्यात्मिक उन्नति के लिए हमारी आत्मचेतना को जागृत करने में सहायक होतेहैं। किसी भी पुराण की सात दिन की कथा का संबंध अष्टांग योग से है।यम नियम आसन प्राणायाम, प्रत्याहार, धारना ध्यान और समाधि।
विष्णु पुराण कथा के सात दिन
पहला और दूसरा दिन यम, नियम याने किसी भी जीव को कष्ट न देना और स्वयं को अनुसाशित करना सिखाता है। तीसरा दिन स्वयं को पावक बनाना पवित्र बनाना है। एक आसन पर बैठकर कथा सुनी जाती है। चौथा दिन प्राणायाम याने कथा सुनने से हमारे हृदय में प्रेम और आस्था का उदय हो जाता है। पांचवा दिन कथा सुनने वाले काध्यान कंठ में स्थित रहना चाहिए। जिससे हमारे जीवन का विस्तार आकाश की तरह हो। छटवां दिन हमारा ध्यानआज्ञा स्थान भृकुटि पर स्थित रहना चाहिए। जिससे हमारा मन एकाग्रचित्त होकर कथा श्रवण करें। जिससे कथा सुनने का सच्चा आनंद प्राप्त कर सके। सातवां दिन हमारा ध्यान शिखर पर जहां शिखा होती है रहना चाहिए। यही मोक्ष का द्वार है। सात दिन की कथा हमें सत्य का ज्ञान कराती है। इसी विचार धारा में हम सात दिन की कथा का आयोजन किया जाता है।
तन मन प्राण और आत्मा से एकाग्रचित्त होकर कथा सुनने से आठवां समाधि का अनुभव होता है। यही साप्ताहिक कथा का महत्व है। सात दिन की कथा एक धार्मिक उत्सव के रूप में आयोजित की जाती है। यह कलश यात्रा से प्रारंभ होती है। मध्य के दिनों में भगवान विष्णु जी की महिमा बताई जाती है । सांस्कृतिक कलाकारों के द्वारा नाटक नृत्य का आयोजन किया जाता है। कीर्तन भजन के साथ अंतिम सातवें दिन यज्ञ हवन और भंडारा किया जाता है। यह अंतिम चरण बहुत ही सुखद और आनंद देने वाला होता है।
श्री विष्णु जी क्या है?
विष्णु शब्द का साधारणतया संधि विच्छेद करे तो विश्व+अणु जो विश्व की पालनहार उर्जा है| विष्णु जी का स्वरूप शान्ति प्रदान करने वाला है|वो भुजंग पर शयन करते हुए भी शांति स्वरूप है| वो विश्व का आधार है| आकाश के समान सर्वव्यापक है| जिनका मेघवर्ण शरीर है| ऐसे लक्ष्मीकांत कमलनयन श्री विष्णु जी सभी सृष्टि के पालनहार कल्याणकारी है|
श्री विष्णु पुराण में इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, भगवान विष्णु जी एवं लक्ष्मी जी की महिमा एवं व्यापकता का वर्णन, उनकी जीवन गाथा, विकास की परंपरा, कृषि गौरक्षा आदि कार्यो का संचालन, भारत के नौ खंडो का वर्णन, सात सागरों का वर्णन, चौदह विधाओं का ज्ञान, कल्पान्त के महाप्रलय का वर्णन, आदि और भी कयी विषयों का विस्तार पुर्वक विवेचन किया गया है।
इस पुराण में भक्ति और ज्ञान की धारा सर्वत्र बह रही है। विष्णु पुराण में श्री कृष्ण बाणासुर संग्राम में भगवान शिव की महिमा को भी प्रतिष्ठित किया गया है। यह एक वैष्णव महापुराण है। यह पतितो को पावन कर सभी का कल्याणात्म ग्रंथ है।
विष्णु के अवतारों का वर्णन
विष्णु भगवन के सभी अवतारों में कृष्ण और राम का अवतार बहुत ही लोकप्रिय है जीके बारे में सभी ज्यादा से ज्याद जानते है।वैसे तो भगवन विष्णु में अपने सभी अवतारों में हमे कोई न कोई शिक्षा प्रदान की है। लेकिन राम और कृष्णा के रूप में लोगो के दिलो में एक अलग ही जगह बनाई है जो इंसान अनंत कल तक नहीं भूल सकता।
भगवान विष्णु के अवतार
जब भी इस पावन धरा पर किसी प्रकार का कोई भी संकट आया भगवान ने अवतार लेकर उस संकट को दूर किया। भगवान शिव और विष्णु ने कयी बार पृथ्वी पर अवतार लिया। भगवान विष्णु के 24 वें अवतार के बारे में मान्यता है कि भगवान का कलयुग में कल्कि अवतार लेकर आना सुनिश्चित है।
उनके 23 अवतार अब तक पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं। जिसमें भगवान विष्णु के 10 अवतार प्रमुख है।
- मत्स्य अवतार
- कूर्म अवतार
- वराह अवतार
- नृसिंह अवतार
- वामन अवतार
- परशुराम अवतार
- राम अवतार
- कृष्ण अवतार
- बुद्ध अवतार
- कल्कि अवतार
भगवान विष्णु के 24 अवतार इस प्रकार है –
- श्री सनकादिक मुनि, सनक, सनंदन सनातन सनत्कुमार – ये विष्णु जी के सर्वप्रथम अवतार माने जाते हैं।
- वराह अवतार – विष्णु जी ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी का उद्धार किया था। .
- नारद अवतार – धर्म ग्रंथों में नारदजी विष्णु अवतार है। जो एक भक्ति रस की मिसाल है।
- नर नरायण – भगवान विष्णु जी ने धर्म की स्थापना के लिए नर नारायण अवतार लिया था।
- कपिल मुनि – कपिल मुनि भागवत धर्म के प्रमुख बारह आचार्यों में से एक है। इनका गंगा अवतरण में विषेश योगदान रहा था। इन्होंने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया था।
- दत्तात्रेय अवतार – यह अवतार ब्रह्मा विष्णु जी व शिव जी का संयुक्त अवतार है। इनकी माता अनुसुइया थी।
- यज्ञ अवतार – स्वयंभू मनु की पत्नी शतरूपा के गर्म से आकुति का जन्म हुआ । उनका विवाह रुचि प्रजापति के साथ हुआ। आकुति के यहाँ भगवान यज्ञ नाम से पुत्र रुप में अवतरित हुए।
- भगवान ॠषभदेव – धर्म ग्रंथों के अनुसार महाराज नाभि और उनकी पत्नी मेरु देवी ने पुत्र कामना यज्ञ किया। प्रसन्न होकर भगवान ने ॠषभदेव के रूप में इनकी संतान बनकर अवतरित हुए।
- आदिराजपृथु – राजा वेन का महर्षियों ने वध करके पुत्रहीन वेन की भुजाओं का मंथन किया जिससे पृथु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।
- मत्स्य अवतार
- कूर्म अवतार
- धन्वंतरि अवतार
- मोहिनी अवतार
- नृसिंह अवतार
- वामन अवतार
- हयग्रीव अवतार
- श्री हरि अवतार
- परशुराम अवतार
- महर्षि वेदव्यास अवतार
- हंस अवतार
- श्रीराम अवतार
- श्री कृष्ण अवतार
- बुद्ध अवतार
- कल्कि अवतार – ग्रंथानुसार कलयुग में भगवान कल्कि रुप में अवतार लेकर आयेंगे। यह अवतार कलयुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। पुराणों के अनुसार यह उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल स्थान पर विष्णुयशा तपस्वी ब्राह्मण के घर होगा । कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार के पापियों का विनाश करेंगे एसी मान्यता प्राप्त है।
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